Son and Daughter Day Poem in Hindi
मैंने माँ को देखा है—
चिड़ियों की चहक में,
फूलों की महक में,
शोलों की दहक में,
ख़्वाबों की पलक में |
मैंने माँ को देखा है—
घटाओं की गरज में,
जैसे रोशनी सूरज में,
तिलमिलाती धुप में,
कभी बेटी,कभी बहन के रूप में |
मैंने माँ को देखा है —
कंपकंपाती सर्द सर्दी में,
सरहद पर लड़ती वर्दी में,
गरीबी के गहरे गाँव में,
ठंडी–ठंडी छरहरी छाँव में |
मैंने माँ को देखा है—
युद्ध के महा मैदान में,
जिन्दगी के इम्तहान में,
काबा–ऐ–कुरान में,
देशभक्ति के गान में |
मैंने माँ को देखा है—
उड़ते आकाशी परिंदों में,
शबनम की नन्ही–नन्ही बूंदों में,
वनवासी देवी सीता में,
भक्तों की श्रीमद भगवद गीता में |
मैंने माँ को देखा है—
ईसा मसीह बाइबिल में,
हर बेटे के दिल में,
हर आदमी के अदब में,
सिक्खों के कुरुग्रंथ साहेब में |
मैंने माँ को देखा है—
शिक्षा की शाला में,
गोधुली बेला में,
इन्द्रधनुष के रंगों में,
कुटुंब के क्रूर दंगों में |
मैंने माँ को देखा है—
माँ शारदे के सात स्वरों में,
राखी के रेशमी डोरों में,
मंदिर–मस्जिद के गलियारे में,
और चर्च–गुरुद्वारे में |
मैंने माँ को देखा है—
हरे–भरे खेत खलिहानों में,
बंजर खोफनाक विरानो में,
रोशन रब–ऐ–जन्नत में,
अभिलाषी के आरजू–ऐ–मन्नत में |
मैंने माँ को देखा है—
मजदुर की मशक्कत–मेहनत में,
दरवेश की दुवा–ऐ–दौलत में,
जर–जर दीवारों की दरारों में,
लहू से लहुलुहान वीरों में |
मैंने माँ को देखा है—
गिरते हुए झर–झर निर्झर में,
पावन गंगा की बहती लहर में,
आकाशी टिमटिमाते तारों में,
चंद्रमा के फिरते फेरों में |
मैंने माँ को देखा है—
हवाओं के बेश कीमती हार में,
प्रकृति के बेशुमार प्यार में,
उस एक पल की पुकार में,
मौत और जिन्दगी की मझधार में |
मैंने माँ को देखा है—