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Sun poetry in hindi: दास्ताने-दिनकर,युगों-युगों से सिने में

Sun poetry in Hindi

युगोंयुगों से सिने में आग लिए,
मैं पलपल जलतापिघलता हूँ,
किसे सुनाऊंदास्तानेदिनकर“,
कैसे सांझसवेरे ढलता निकलता हूँ |
चन्दाचकोरी की,
प्रेम कहानी जग जाने,
टूटते तारों पे मन्नतें,
मांगते है ये जमाने,
कोई ज़र्रा नहीं जो,
मेरे गमो से रूबरू हो जाए,
इस महफ़िल में तो,
सब चाँदतारों के है दीवाने |
 
क्या खूब जिंदगी तूने,
मुझे अता की है मेरे मौला,
शबनम का नामोनिशाँ नहीं,
तूने मेरे एहसासों में घोला,
बना दिया तूने मेरी,
सूरतसीरत को आग का गोला,
बस दहकता रहता है,
मेरे रोमरोम में शोला ही शोला |
 
मोती ममता के क्या होते है,
पलकों पर सपने कैसे सोते है,
भूखप्यास क्या होती है,
आँखे भरभर आंसू कैसे रोती है,
इनको महसूस नहीं कर पाता हूँ,
पत्थर से भी नीरस जिंदगी बिताता हूँ,
किसे सुनाऊंदास्तानेदिनकर“,
  कैसे सांझसवेरे ढलता निकलता हूँ|
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1 thought on “Sun poetry in hindi: दास्ताने-दिनकर,युगों-युगों से सिने में

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