Andha Kanoon: अंग्रेजी क़ानून भारत की जनता क्यूँ ढो रही है?

Andha Kanoon freaky funtoosh
Andha Kanoon: मुझे याद आती है सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की “अंधा क़ानून” फिल्म जो कि सन 1983  में बनी थी | इस फिल्म की स्टोरी पूर्ण रूप से देश के घिसे-पिटे अंग्रेजी क़ानून पर आधारित थी, जिसमे क़ानून के झूट और फरैबी मुखोटों का चित्रण बहुत ही बेहतरीन ढंग से निर्देशक टी. रामा राव के निर्देशन में किया गया है | जो अन्याय इस फिल्म में बिग बी और आम जनता के साथ होता है ठीक वैसा ही परिदृश्य आज के अंधे-क़ानून में देखने को मिलता है |
 
भारतीय क़ानून व्यवस्था आज उस गिरगिट की तरह हो गई है जो जुर्म को नहीं वरन जुर्मकर्ता को देखकर रंग बदल लेती है | देश में जिला कोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तलक सभी क़ानून के रखवाले और ठेकेदार सब के सब कानूनी सिस्टम के साथ जब चाहे जैसे चाहे और जितनी चाहे छेड़खानी कर रहे है | गौर करने वाली बात यह है कि क़ानून के एक ही नियम में जनता और जुर्म को लेकर इतनी विविधता और विषमताएं क्यूँ है ? देश का क़ानून तो “सर्वजन हिताय” पर आधारित होना चाहिए फिर वही पुराना घिसा-पिता अंग्रेजी क़ानून भारत की जनता क्यूँ ढो रही है ? 
 
वर्तमान परिवेश और व्यवस्थाओं पर आधारित क़ानून क्यूँ नहीं बनाए जाते ? भारतीय क़ानून को लेकर बात चाहे बाबरी मस्जिद की हो या संजू बाबा उर्फ़ संजय दत्त जैसे दादा आदमी या फिर दबंग सलमान खान के अमानवीय जुर्म की कहानी, सब कुछ मालुम होते हुए भी इन केसेस को दस-दस, बीस-बीस साल तक खीचा जाता है और अंत में जब सजा की बात आती है तो बेल रूपी शब्द के साथ छोड़ दिया जाता है, वहीँ दूसरी तरफ कोई आम आदमी मने देश का मेंगो मेन अगर एक छोटा-सा भी जुर्म करता है तो सजा तुरंत मिल जाती है और बेल के नाम पर बाबाजी का ठुल्लू मिलता है |
 

Andha Kanoon Video

 
                       Source- jaipal rastogi
 

भारतीय क़ानून में इतनी असमानताएं और भेदभाव क्या सिर्फ धन और वैभव के आधार पर है ? वास्तव में क़ानून में बदलाव लाने की अति आवश्यकता है | एक और अहम् पहलू कसाब जैसे आतंकवादी को ये जानते हुए भी कि वह सर्वमान्य गुनाहगार है, सालों सलाखों के पीछे रखना और अंत में मार देना, भारतीय दंड सहिंता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है | दूसरी तरफ आशाराम बापू जैसे बुजुर्ग संत जो कि इंडियन सोसाइटी के लिए धूर्त साबित हो चूके है, बेल की आस में क़ानून पर छिटाकशी कर रहे है जो बिलकुल सो टका जायज है | 

Andha Kanoon की सच्चाई

यह तो महज सतही क़ानून की सच्चाई है, अन्दर की बात तो यह है कि आज भी छोटी-बड़ी देश की सभी अदालतों में हजारों केसेस पेंडिंग पड़े है, इन केसेस का कोई माई-बाप ही नहीं है | ऐसे में हम क़ानून पर कैसे भरोसा करें और न्याय रूपी शब्द के नाद से खुद को समझाते रहें | भारतीय क़ानून इंडियन सोसाइटी में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए होता है ना कि सोसाइटी में भेदभाव और अनैतिकता लाने के लिए | भारतीय क़ानून व्यवस्था सब के लिए समान हो, सुचारू रूप से नैतिक हो और “सर्वजन हिताय” हो, जिससे इसकी कार्य प्रणाली और न्याय करने की निति पर कोई दाग न लगे और कोई उंगली न उठाये, तभी हम दुनिया में कानूनी तौर पर स्वतंत्र और भिन्न कहलायेंगे |
 
 

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