Karwachauth: करवाचौथ पति-पत्नी के रिश्तों में मिठास भरने की एक अनुपम कड़ी है, करवाचौथ क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे एक कथा प्रचलित है. जब निलगिरी पर्वत पर अर्जुन तप करने चले गए तब उनकी चिंता में द्रोपदी व्यथित होने लगी कि कहीं दुष्ट लोग उनका तप भंग न कर दे.
जब श्री कृष्णा ने उनको करवा का व्रत और विधान समझाया. इस व्रत में करवा अर्थात कलश करवा माता का प्रतिक होता है.
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ऐसा माना जाता है कि संध्या के समय सौभाग्यशाली महिलाएं विधि-विधान से करवा माता की पूजा करती है व् चंद्रोदय के समय चन्द्र को अर्ध्य देकर अपने पति के हाथों जल ग्रहण करती है, उनका करवाचौथ सौभाग्य व् आरोग्य रहता है. इस व्रत को करने से महिलाओं को मानसिक शांति और अपने पति से अपार प्रेम की अनुभूति होती है !
करवा चौथ क्यों मनाया जाता है?
नारी को शक्ति का स्वरूप माना जाता है, इसीलिए उसे यह वरदान मिला है कि वह जिस किसी भी वस्तु का ध्यान करती है उसका फल उसे अवश्य ही प्राप्त होता है।
हमारी पौराणिक कथाओं में सावित्री अपने पति को यमराज से वापस लाती है, यानि स्त्री में इतनी शक्ति होती है कि वह चाहे तो कुछ भी हासिल कर सकती है। इसलिए महिलाएं करवा चौथ के व्रत के रूप में अपने पति की लंबी उम्र के लिए तपस्या करती हैं। तप का अर्थ है किसी चीज को त्याग कर एक दिशा में आगे बढ़ना, पहले के समय में ऋषि-मुनि ध्यान और सिद्धियों को प्राप्त करते थे। महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखती हैं।
चौथ का चांद हमेशा देर से निकलता है, यह इस बात की परीक्षा है कि वह अपने पति के लिए कितना त्याग कर सकती है। कई बार देर रात तक चांद दिखाई नहीं देता। यह मौसम ऐसा होता है कि कई बार बादल छा जाते हैं और चांद नजर ही नहीं आता। ऐसे में महिलाएं देर रात या अगले दिन तक अपना व्रत नहीं तोड़ती हैं।