Sun poetry in hindi: दास्ताने-दिनकर,युगों-युगों से सिने में
Sun poetry in Hindi युगों–युगों से सिने में आग लिए, मैं पल–पल जलता–पिघलता हूँ, किसे सुनाऊं“दास्ताने–दिनकर“, कैसे सांझ–सवेरे ढलता निकलता हूँ | चन्दा–चकोरी की, प्रेम कहानी जग जाने, टूटते तारों पे मन्नतें, मांगते है ये जमाने, कोई ज़र्रा नहीं जो, मेरे गमो से रूबरू हो जाए, इस महफ़िल में तो, सब चाँद–तारों के है…
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