जाने क्यूँ ये दर्द, मीठा-मीठा -सा लगता है हर ज़ख्म पर कोई, मिश्री घोल रहा हो जैसे अपने ही आंसुओं पर, दरिया बन गई है ये आँखें हर नज़र में…
Tag: hindi kavita
महज चेचिस पर ही झुर्रियों ने ली अंगड़ाई है
महज चेचिस पर ही झुर्रियों ने ली अंगड़ाई है महज हाड़-मांस में ही कल-पुर्जों की हुई घिसाई है बाखुदा मोहब्बत तो आज भी कतरे-कतरे में उफान पर है इस नामुराद…
सोचने का अंदाज़ बदलो,बस
सोचने का अंदाज़ बदलो दुनिया बदल जायेगी शुलों को गुलों में बदलते चलो मंजिल खुद दोड़ी चली आएगी दुश्मन को भी दोस्त बनाते चलो दोस्ती की मिसाल बड़ जायेगी सोचने…